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आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम

आसमाँ पे है खुदा और ज़मीं पे हम आजकल वो इस तरफ देखता है कम आजकल किसी को वो टोकता नहीं, चाहे कुछ भी कीजिये रोकता नहीं, हो रही है लूटमार, फट रहे हैं बम आसमाँ पे है खुदा ….

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आज के इस इंसान को ये क्या हो गया?

आज के इस इंसान को ये क्या हो गया? इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया? कैसी ये मनहूस घड़ी है भाइयों में जंग छिड़ी  है कहीं पे खून, कहीं पर ज्वाला जाने क्या है होने वाला सबका माथा आज … Continue reading

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तथाकथित सभ्यता / So-called Civilization

हुए इस कदर मुहज़्ज़ब, कभी घर का मुँह न देखा कटी उम्र होटलों में, मरे अस्पताल जाकर —- * शब्दार्थ मुहज़्ज़ब = सभ्य, शिष्ट, civilized —- शेर: अकबर इलाहाबादी डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित … Continue reading

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जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

ये कूचे ये नीलामघर दिलकशी के ये लुटते हुये कारवाँ ज़िन्दगी के कहाँ हैं, कहाँ है, मुहाफ़िज़ ख़ुदी के * जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं …

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पैसे का मंतर, पैसे का जंतर

पैसे का मंतर, पैसे का जंतर पैसा-पैसा छू जाते प्राण पलट के आवें गज़ब तेरा जादू छू-छू मंतर, है जादू मंतर

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