Tag Archives: व्यंग्य

पैसे का मंतर, पैसे का जंतर

पैसे का मंतर, पैसे का जंतर पैसा-पैसा छू जाते प्राण पलट के आवें गज़ब तेरा जादू छू-छू मंतर, है जादू मंतर

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चीन-ओ-अरब हमारा, हिन्दोस्ताँ हमारा

Happy Independence Day 2012 / स्वतंत्रता दिवस २०१२ आज़ादी के 65 वर्ष पूरे हुये… एक तरफ एक ऐसी स्वतंत्रता की ख़ुशी जिसके लिये लाखों-करोड़ों लोगों ने कोई आठ सौ वर्ष कमोबेश परतंत्र के दुःख झेले, दूसरी तरफ अभी भी बहुत … Continue reading

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भारतेंदु हरिश्चंद्र की कुछ और रचनायें

अंग्रेज़ महिमा मरी बुलाऊँ, देस उजाडूँ, महँगा करके अन्न। सबके ऊपर टिकट लगाऊँ धन है मुझको धन्न।। टिपण्णी: यहाँ टिकट का प्रयोग संभवतः “टैक्स” (कर) के लिये किया गया है —- “अथ अंगरेज स्तोत्र लिख्यते” “ “तुम मूर्तिमान हो, राज्य … Continue reading

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पाणि-ग्रहण

ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे, क्या हँसता है? देख सामने तेरा आगत मुँह लटकाये हुआ खड़ा हुआ है . अब हँसता है फिर रोयेगा, शहनाई के स्वर में जब बच्चे चीखेंगे चिंताओं का मुकुट शीश पर धरा रहेगा खर्चों की … Continue reading

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बापू के बन्दर आधुनिक युग में (काका हाथरसी)

बन्दर एक बता रहा, रखकर मुँह पर हाथ चुप्पी से बनते चतुर, औंदू-भौंदूनाथ औंदू-भौंदूनाथ, सुनो साहब-सरदारो एक चुप्प से हार जायें, वाचाल हजारों ‘काका’ करो इशारों से, स्मगलिंग का धंधा गूँगा बनकर छूट, तोड़ कानूनी फंदा

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