बन्दर एक बता रहा, रखकर मुँह पर हाथ
चुप्पी से बनते चतुर, औंदू-भौंदूनाथ
औंदू-भौंदूनाथ, सुनो साहब-सरदारो
एक चुप्प से हार जायें, वाचाल हजारों
‘काका’ करो इशारों से, स्मगलिंग का धंधा
गूँगा बनकर छूट, तोड़ कानूनी फंदा
दूजे बन्दर ने कहा, जो अब तक था शांत
हमने भी अपना सखे, बदल दिया सिद्धांत
बदल दिया सिद्धांत, कान पर रखो हथेली
करने दो निंदा करते हैं, चेला-चेली
अवसरवादी बनो, परिस्थित देखो जैसी
मंत्रीपद के आगे, दल की ऐसी-तैसी
बन्दर बोला तीसरा, करके आँखें बंद
रिश्वत खाओ प्रेम से, भज राधे-गोविन्द
भज राधे-गोविन्द, माल उनका सो अपना
वेद-शास्त्र कह रहे, जगत को जानो सपना
डूब गया परमार्थ, स्वार्थ से भरा समंदर
समय देखकर बदल गये, बापू के बन्दर
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रचना: काका हाथरसी
स्रोत: ओशो रजनीश के एक प्रवचन से साभार उद्धृत