भारतेंदु हरिश्चंद्र की कुछ और रचनायें

अंग्रेज़ महिमा

मरी बुलाऊँ, देस उजाडूँ, महँगा करके अन्न।
सबके ऊपर टिकट लगाऊँ धन है मुझको धन्न।।

टिपण्णी: यहाँ टिकट का प्रयोग संभवतः “टैक्स” (कर) के लिये किया गया है

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“अथ अंगरेज स्तोत्र लिख्यते” “

“तुम मूर्तिमान हो, राज्य प्रबंध तुम्हारा अंग है, न्याय तुम्हारा सिर है, दूरदर्शिता तुम्हारा नाक है, देश पक्षपात तुम्हारा मोक्ष है और ट्रक्स तुम्हारे करालद्रष्टा हैं। अतएव, हे अंगरेज ! हम तुमको प्रणाम करते हैं। तुम हमारी रक्षा करो।”

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कपट कटारी जिय में हुलिस।
क्यों सखि साजन ? नहिं सखि पुलिस।।

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बनारस महिमा

आधी कासी भाट भंडेरिया ब्राह्मन और संन्यासी।
आधी कासी रंडी-मुंडी राँड खानगी खासी।।

मैली गली भरी कतवारन सडी चमारिन पासी।
नीचै नल से बदबू उबलै मनो नरक चौरासी।।

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रचना: भारतेंदु हरिश्चंद्र
स्रोत:  http://www.lakesparadise.com/madhumati/show-article_1143.html

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इंडिया वर्ल्ड ऑन दि नेट पर भारतेंदु हरिश्चंद्र की और और कवितायेँ देखें:

http://blog.india-world.net/tag/bharatendu-harishchandra/

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