Tag Archives: काका हाथरसी

दहेज की बारात

जा दिन एक बारात को मिल्यौ निमंत्रण-पत्र फूले-फूले हम फिरें, यत्र-तत्र-सर्वत्र यत्र-तत्र-सर्वत्र, फरकती बोटी-बोटी बा दिन अच्छी नाहिं लगी अपने घर रोटी कहँ ‘काका’ कविराय, लार म्हौंड़े सों टपके कर लड़ुअन की याद, जीभ स्याँपन सी लपके

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सफल नेता

सफल राजनीतिज्ञ वह जो, जन गण में व्याप्त । जिस पद को वह पकड़ ले, कभी न होय समाप्त ॥ कभी न होय समाप्त, घुमाए पहिया ऐसा । पैसा से पद मिले, मिले फिर पद से पैसा ॥ कँह काका … Continue reading

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जय बोलो बेईमान की

मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार। झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा ‘सत्य-भगवान’ की, जय बोलो बेईमान की! प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल, टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल। नित्य नई योजना बन … Continue reading

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नगरपालिका वर्णन

पार्टीबंदी हों जहाँ, घुसे अखाड़ेबाज़ मक्खी, मच्छर, गंदगी का रहता हो राज का रहता हो राज, सड़क हों टूटी – फूटी नगरपिता मदमस्त, छानते रहते बूटी कहँ ‘काका’ कविराय, नहीं वह नगरपालिका बोर्ड लगा दो उसके ऊपर ‘नरकपालिका’

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चंद्रयात्रा और नेता का धंधा

ठाकुर ठर्रा सिंह से बोले आलमगीर पहुँच गये वो चाँद पर, मार लिया क्या तीर? मार लिया क्या तीर, लौट पृथ्वी पर आये किये करोड़ों ख़र्च, कंकड़ी मिट्टी लाये ‘काका’, इससे लाख गुना अच्छा नेता का धंधा बिना चाँद पर … Continue reading

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