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पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये….

पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये…. भगवन तेरी सुन्दर रचना कितनी प्यारी है, तेरी महिमा के गुण गाता हर नर-नारी है ख़ामोशी कुछ बोल रही है, भेद अनोखे खोल रही है पंख-पखेरू सोच में … Continue reading

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रात गई फिर दिन आता है…

रात गई फिर दिन आता है इसी तरह आते-जाते ही, ये सारा जीवन जाता है…

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गर्मी की दोपहर

सामने खड़ी दस मंज़िला इमारत। हर घर की बाल्कनी से झाँकता कम से कम एक टीवी अन्टेना। लेकिन हर घर चुप खामोश इतना कि लगे इमारत जैसे ख़ाली हो!

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रावण के राज में

मेरी नन्ही-सी बिटिया मुनमुन, अक्सर विचारों को लेती है बुन, मैंने उसे रावण का पुतला दिखाया,

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रेल के डिब्बे में रामराज

डिब्बा था रेल का, तूफ़ान मेल का डिब्बे में डाकू थे डाकुओं के हाथों में, बंदूकें-चाकू थे पचहत्तर यात्री थे यात्रियों में एक थे, खद्दर के कपड़ों में दिखते थे नालायक, लेकिन विधायक थे

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