गर्मी की दोपहर

सामने खड़ी दस मंज़िला इमारत।
हर घर की बाल्कनी से झाँकता कम से कम एक टीवी अन्टेना।
लेकिन हर घर चुप
खामोश इतना कि लगे
इमारत जैसे ख़ाली हो!

इमारत के पीछे से नीले चमकते आसमान में
उभर रहा सफ़ेद बादल।
कुछ देर तक इमारत पर इस तरह ठहरता है
जैसे इस इमारत से इसे प्यार हुआ हो उसे
या बारीक़ी से देख रहा हो नीचे खेलते बच्चों को
बच्चों पर नाज़ करतीं, उनको डांटती हुई माँएँ
उनमें से कुछ अभी अभी माँ बनी हैं, कुछ बड़ी अनुभवी हैं
अपने बच्चों के साथ खेलने की चेष्टा में लगे उनके पिता
बादल का आकार बढ़ रहा है और धूप भी
इमारत के इर्द गिर्द उगे छोटे बड़े पेड़ों के पत्तों की आवाज़
बहती हवा का एहसास दिलाती है।

लगता है इस साल गर्मी ज़्यादा रहेगी।

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रचना: मंदार पुरंदरे

(२ जुलाई, २०१३ – पोजनान )

Authored by: Mandar Purandare

 

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