पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये….
भगवन तेरी सुन्दर रचना कितनी प्यारी है,
तेरी महिमा के गुण गाता हर नर-नारी है
ख़ामोशी कुछ बोल रही है, भेद अनोखे खोल रही है
पंख-पखेरू सोच में ग़ुम हैं, पेड़ खड़े हैं शीश झुकाये
पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये
भगवन तेरी सुन्दर रचना कितनी प्यारी है,
तेरी महिमा के गुण गाता हर नर-नारी है
धुँधले-धुँधले मस्त नज़ारे, उड़ते बादल, मुड़ते धारे
छुपके नज़र से, जाने ये किसने, ऐसे रंगीले खेल रचाये
पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये
भगवन तेरी सुन्दर रचना कितनी प्यारी है,
तेरी महिमा के गुण गाता हर नर-नारी है
कोई भी उसका राज़ न जाने, एक हक़ीक़त, लाख फ़साने
एक ही जलवा शाम सवेरे, भेष बदल कर सामने आये
पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये
भगवन तेरी सुन्दर रचना कितनी प्यारी है,
तेरी महिमा के गुण गाता हर नर-नारी है
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गीत: साहिर लुधियानवी / Lyric: Sahir Ludhiyanvi
संगीत: सचिन देव बर्मन / (Music: S.D. Burman)
गायिका: लता मंगेश्कर और साथी / Singer: Lata Mangeshkar and chorus
अभिनेता: गीता बाली और साथी / (Actors: Geeta Bali, and others)
फिल्म: जाल (१९५२) / Film: Jaal (1952)
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Pighla hai sona door gagan par, phail rahe hain shaam ke saaye
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