रावण के राज में

मेरी नन्ही-सी
बिटिया मुनमुन,
अक्सर विचारों को
लेती है बुन,
मैंने उसे रावण का
पुतला दिखाया,


देखते ही उसने
प्रश्न दनदनाया,
“पापा, रावण अंकल के
दस सीस,
आँखें बीस,
सुबह उठकर अपनी
कौन-सी आँखें
धोते होंगे,
बेचारे बीस-बीस
आँखों से
कैसे रोते होंगे?
मैंने कहा, “बेटी,
तू नाहक विचारों में
खोती है,
रावण के राज में
रावण नहीं
प्रजा रोती है।”

——

रचना: अज्ञात
स्रोत: http://hasyakavita.jagranjunction.com से साभार उद्धृत

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