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शहरी जेबकतरा

बस में अपनी जेब कटती देख, यात्री ने शोर मचाया जेबकतरा उसे पकड़ कर थाने लाया और थानेदार से बोला, हुज़ूर, यह आदमी शहर में अव्यवस्था फैलाता है हमें शांतिपूर्वक जेब नहीं काटने देता गँवारों की तरह चिल्लाता है थानेदार … Continue reading

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तत्कालीन भारत और आधुनिक ग्रीस

एक बार बहुत पहले ये कविता कहीं पढ़ी थी। लिखी तो गयी थी ये संभवतः साठ-सत्तर के दशक के भारत के लिये। पर आज तो लगता है कि जैसे ये अब ग्रीस (यूनान) पर भी चरितार्थ होती है: आय इकाई, … Continue reading

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उनका ग़म

हर ख़ुशी दिल को ग़मगीन किये जाती है इक तेरे ग़म से ज़िंदगी शादाब हुई जाती है

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ज़िंदगी ईनाम-ए-कुदरत है…

कहते हैं मुझसे, ज़िंदगी ईनाम-ए-कुदरत है सज़ा क्या होगी उसकी, जिसका ये ईनाम है साकी

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गाँव में शहर की महिला

शहर की एक महिला ने हिम्मत दिखाई, वह प्रौढ़ों को शिक्षित करने के लिये गाँव में आई एक दिन यूँ ही बैठी-बैठी सुस्ता रही थी और एक गीत गा रही थी ” ओ सावन के बदरा, ” आये नहीं हमारे … Continue reading

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