Tag Archives: भ्रष्टाचार

भारतेंदु हरिश्चंद्र की कुछ और रचनायें

अंग्रेज़ महिमा मरी बुलाऊँ, देस उजाडूँ, महँगा करके अन्न। सबके ऊपर टिकट लगाऊँ धन है मुझको धन्न।। टिपण्णी: यहाँ टिकट का प्रयोग संभवतः “टैक्स” (कर) के लिये किया गया है —- “अथ अंगरेज स्तोत्र लिख्यते” “ “तुम मूर्तिमान हो, राज्य … Continue reading

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बापू के बन्दर आधुनिक युग में (काका हाथरसी)

बन्दर एक बता रहा, रखकर मुँह पर हाथ चुप्पी से बनते चतुर, औंदू-भौंदूनाथ औंदू-भौंदूनाथ, सुनो साहब-सरदारो एक चुप्प से हार जायें, वाचाल हजारों ‘काका’ करो इशारों से, स्मगलिंग का धंधा गूँगा बनकर छूट, तोड़ कानूनी फंदा

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आधुनिक शिक्षा

विद्यालय में आ गये इंस्पेक्टर स्कूल छठी क्लास में पढ़ रहा विद्यार्थी हरफूल विद्यार्थी हरफूल, प्रश्न उससे कर बैठे किसने तोड़ा शिव का धनुष, बताओ बेटे?

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आधुनिक चोर

दोपहरी में चोर दुकान का, तोड़ रहा था ताला पुलिसमैन था खड़ा सड़क पर, बोले उससे लाला खड़े-खड़े क्या देख रहे हो, पकड़ो उसे सिपाही कहा सिपाही ने तब, इसको मैं नहीं पकड़ता भाई आगे चलकर ये मेरी सर्विस को … Continue reading

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हमारे ऐसे भाग्य कहाँ (शैल चतुर्वेदी)

एक दिन अकस्मात एक पुराने मित्र से हो गई मुलाकात हमने कहा-“नमस्कार।” वे बोले-“ग़ज़ब हो गया यार! क्या खाते हो जब भी मिलते हो पहले से डबल नज़र आते हो?”

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