Tag Archives: जीवन-सूत्र

केरि-बेरि को संग

कहि रहीम कैसे निभै, केरि-बेरि को संग वा डोलत रस आपने, इनके फाटत अंग कवि: अब्दुर्रहीम खान खाना / Abdul Rahim Khan-I-Khana

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ये दुनिया, हाय हमारी ये दुनिया

ये दुनिया, ये दुनिया, हाय हमारी ये दुनिया शैतानों की बस्ती है, यहाँ ज़िन्दगी सस्ती है ये दुनिया…

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चाहे कोई खुश हो, चाहे गालियाँ हज़ार दे

चाहे कोई खुश हो, चाहे गालियाँ हज़ार दे मस्तराम बन के ज़िन्दगी के दिन गुज़ार दे

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देने वाला जब भी देता…

देने वाला जब भी देता, पूरा छप्पर फाड़ के देता नंग-धडंग-मलंग जनों को दूरबीन से ताड़ के देता न देखे वो गोरा-काला, न देसी-परदेसी जब चाहे सोने से भर दे, फटे टाट की ठेसी जिस पर उसको प्यार आ जाता, … Continue reading

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कितना बदल गया भगवान

देख तेरे भगवान की हालत क्या हो गई इंसान कितना बदल गया भगवान, कितना बदल गया भगवान (मारवाड़ी सेठ: काईं बोलै शैतान !)

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