Tag Archives: लोकोक्तियाँ

देनदार कोउ और है…

देनदार कोउ और है, देत रहत दिन-रैन । लोग भरम हम पर करें, ताते नीचे नैन ।। कवि: अब्दुर्रहीम खान खाना / Abdul Rahim Khan-I-Khana

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सुभाषित : शोक का प्रभाव

मूल संस्कृत पद्य शोको नाशयते धैर्य, शोको नाशयते श्रॄतम्। शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपु॥

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नीति-शतक : न्याय का पथ

मूल संस्कृत पद्य निन्दन्तु नीतिनिपुणा, यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः स्थिरा भवतु, गच्छतु वा यथेष्टम् । अद्यैव वा मरणमस्तु, युगान्तरे वा न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति, पदं न धीराः ।। ७४ ।।

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अति का वर्जन

अति गुणी अति निर्गुणी, अति दाता अति सूर इन चारौं से लक्ष्मी, सदा रहत हैं दूर ——– श्रेणी: बुन्देलखंड की लोकोक्तियाँ स्रोत: दोहा ज्ञान अमृत सागर (संग्रहकर्ता: श्री देवीदीन विश्वकर्मा, कीरतपुरा, महोबा, उ.प्र.) मुद्रक: गोपाल ऑफसेट प्रेस (मऊरानीपुर, झाँसी, उ.प्र.) … Continue reading

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कर्महीन

कहा दोष करतार को, कर्म कुटिल गह बाँह कर्महीन किलपत रहै, कल्प वृक्ष की छाँह ——– श्रेणी: बुन्देलखंड की लोकोक्तियाँ स्रोत: दोहा ज्ञान अमृत सागर (संग्रहकर्ता: श्री देवीदीन विश्वकर्मा, कीरतपुरा, महोबा, उ.प्र.) मुद्रक: गोपाल ऑफसेट प्रेस (मऊरानीपुर, झाँसी, उ.प्र.) श्री … Continue reading

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