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नीति-शतक : न्याय का पथ

मूल संस्कृत पद्य निन्दन्तु नीतिनिपुणा, यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः स्थिरा भवतु, गच्छतु वा यथेष्टम् । अद्यैव वा मरणमस्तु, युगान्तरे वा न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति, पदं न धीराः ।। ७४ ।।

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श्रृंगार-शतक : रमणियाँ

मूल संस्कृत पद्य स्मितेन भावेन च लज्जया भिया पराङ्गमुखैरर्धकटाक्षवीक्षणैः । वचोभिरीर्ष्याकलहेन लीलया समस्तभावैः खलु बन्धनं स्त्रियः ।। २ ।।

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श्रृंगार-शतक : स्त्रियों के आभूषण और अस्त्र

मूल संस्कृत पद्य भ्रूचातुर्यात्कुञ्चिताक्षाः कटाक्षाः स्निग्धा वाचो लज्जितान्ताश्च  हासाः । लीलामन्दं प्रस्थितं च स्थितं च स्त्रीणामेतद्  भूषणं चायुधं च ।। ३ ।। —

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