Tag Archives: विनय वाईकर

फुटपाथ और घर

सोते हैं जो फुटपाथ पे वो सोच रहे हैं घर जिनके सलामत हैं वो घर क्यों नहीं जाते । — शेर: सतनाम सिंह ‘हुनर’

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दोनों जहान

दोनों जहान देके वो समझे कि ये खुश रहा यहाँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें शेर: मिर्ज़ा ग़ालिब डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 64,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) से … Continue reading

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हौसला

वो ज़िन्दगी का सफ़र हो कि जंग का मैदान मुहाज़ कोई भी हो, हौसला ज़रूरी है * —- * शब्दार्थ मुहाज़ = (war) front —- शेर: इदरीस ज़िया डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण … Continue reading

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तथाकथित सभ्यता / So-called Civilization

हुए इस कदर मुहज़्ज़ब, कभी घर का मुँह न देखा कटी उम्र होटलों में, मरे अस्पताल जाकर —- * शब्दार्थ मुहज़्ज़ब = सभ्य, शिष्ट, civilized —- शेर: अकबर इलाहाबादी डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित … Continue reading

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मेअराज-ए-सितम

देखना चाहो अगर तुम अपनी मेअराज-ए-सितम मुस्कुरा देना मेरी बरबादी-ए-दिल देखकर

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