Tag Archives: मिर्ज़ा ग़ालिब

हसरत-ए-दीदार

दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके देखा तो हम में ताक़त-ए-दीदार भी नहीं शेर: मिर्ज़ा ग़ालिब

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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत, कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता तेरे वादे पर जिये हम, तो ये जान झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता

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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

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दोनों जहान

दोनों जहान देके वो समझे कि ये खुश रहा यहाँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें शेर: मिर्ज़ा ग़ालिब डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 64,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) से … Continue reading

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क़हर हो या बला

क़हर हो या बला हो, जो कुछ हो काश कि तुम मेरे लिये होते । शेर: मिर्ज़ा ग़ालिब डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 31,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) से साभार उद्धृत —– … Continue reading

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