दोनों जहान देके वो समझे कि ये खुश रहा
यहाँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें
शेर: मिर्ज़ा ग़ालिब
डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 64,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) से साभार उद्धृत
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Donon jahaan deke woh samjhe yeh khush raha
Yahaan aa padi yeh sharm ki takraar kya karen
Sher/Couplet: Mirza Ghalib
Gratefully excerpted from “Aaina-e-Ghazal” of Dr. Zarina Sani and Dr. Vinay Waikar, 5th revised edition, 2002, p. 64, Shree Mangesh Prakashan, Nagpur.