सोते हैं जो फुटपाथ पे वो सोच रहे हैं
घर जिनके सलामत हैं वो घर क्यों नहीं जाते ।
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शेर: सतनाम सिंह ‘हुनर’
डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 234,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) से साभार उद्धृत
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Sote hain jo footpath pe woh soch rahe hain
Ghar jinke salaamat hain woh ghar kyon nahin jaate
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Sher/Couplet: Satnam Singh ‘Hunar’
Gratefully excerpted from “Aaina-e-Ghazal” of Dr. Zarina Sani and Dr. Vinay Waikar, 5th revised edition, 2002, p. 234, Shree Mangesh Prakashan, Nagpur.