Tag Archives: हिन्दी पद्य

बापू के बन्दर आधुनिक युग में (काका हाथरसी)

बन्दर एक बता रहा, रखकर मुँह पर हाथ चुप्पी से बनते चतुर, औंदू-भौंदूनाथ औंदू-भौंदूनाथ, सुनो साहब-सरदारो एक चुप्प से हार जायें, वाचाल हजारों ‘काका’ करो इशारों से, स्मगलिंग का धंधा गूँगा बनकर छूट, तोड़ कानूनी फंदा

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आलसी चेला

मौसम था बरसात का, भादौं आधी रात का आश्रम श्रम से दूर था, सुनो वहाँ की बात सुनो वहाँ की बात, जलेबी दूध पराठे खा पी करके गुरु, ले रहे थे खर्राटे आँख खुली तो, चेले को आवाज़ लगायी क्यों … Continue reading

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आधुनिक शिक्षा

विद्यालय में आ गये इंस्पेक्टर स्कूल छठी क्लास में पढ़ रहा विद्यार्थी हरफूल विद्यार्थी हरफूल, प्रश्न उससे कर बैठे किसने तोड़ा शिव का धनुष, बताओ बेटे?

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आवारा (मजाज़ लखनवी)

शहर की रात और मैं, नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ जगमगाती जागती, सड़कों पे आवारा फिरूँ ग़ैर की बस्ती है, कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

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आधुनिक चोर

दोपहरी में चोर दुकान का, तोड़ रहा था ताला पुलिसमैन था खड़ा सड़क पर, बोले उससे लाला खड़े-खड़े क्या देख रहे हो, पकड़ो उसे सिपाही कहा सिपाही ने तब, इसको मैं नहीं पकड़ता भाई आगे चलकर ये मेरी सर्विस को … Continue reading

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