Category Archives: Urdu (Hindustani)

केरि-बेरि को संग

कहि रहीम कैसे निभै, केरि-बेरि को संग वा डोलत रस आपने, इनके फाटत अंग कवि: अब्दुर्रहीम खान खाना / Abdul Rahim Khan-I-Khana

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दोनों जहान

दोनों जहान देके वो समझे कि ये खुश रहा यहाँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें शेर: मिर्ज़ा ग़ालिब डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 64,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) से … Continue reading

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किसे याद रखूँ, किसे भूल जाऊँ

कोई दिल में है, और कोई है नज़र में, मोहब्बत के सपने, मैं किस पे लुटाऊँ। इसी कशमकश में, जिये जा रहा हूँ, किसे याद रखूँ, किसे भूल जाऊँ।।

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आज के इस इंसान को ये क्या हो गया?

आज के इस इंसान को ये क्या हो गया? इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया? कैसी ये मनहूस घड़ी है भाइयों में जंग छिड़ी  है कहीं पे खून, कहीं पर ज्वाला जाने क्या है होने वाला सबका माथा आज … Continue reading

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हौसला

वो ज़िन्दगी का सफ़र हो कि जंग का मैदान मुहाज़ कोई भी हो, हौसला ज़रूरी है * —- * शब्दार्थ मुहाज़ = (war) front —- शेर: इदरीस ज़िया डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण … Continue reading

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