Tag Archives: व्यंग्य

निरादरणीय दल-बदलू जी…

निरादरणीय दल-बदलू जी, बार-बार धिक्कार सुना है आपने दूसरा दल भी छोड़ दिया अपना भाग्य फोड़ा या उनका फोड़ दिया लोग व्यर्थ ही संशय करते हैं कि आप कैसे हैं किंतु आप क्या करें आपके संस्कार ही ऐसे हैं अस्पताल … Continue reading

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फुटपाथ और घर

सोते हैं जो फुटपाथ पे वो सोच रहे हैं घर जिनके सलामत हैं वो घर क्यों नहीं जाते । — शेर: सतनाम सिंह ‘हुनर’

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सूरज, ज़रा, आ पास आ….

सूरज, ज़रा, आ पास आ, आज सपनों की रोटी पकायेंगे हम ऐ आसमाँ, तू बड़ा मेहरबाँ आज तुझको भी दावत खिलायेंगे हम

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रावण के राज में

मेरी नन्ही-सी बिटिया मुनमुन, अक्सर विचारों को लेती है बुन, मैंने उसे रावण का पुतला दिखाया,

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रेल के डिब्बे में रामराज

डिब्बा था रेल का, तूफ़ान मेल का डिब्बे में डाकू थे डाकुओं के हाथों में, बंदूकें-चाकू थे पचहत्तर यात्री थे यात्रियों में एक थे, खद्दर के कपड़ों में दिखते थे नालायक, लेकिन विधायक थे

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