Tag Archives: हिन्दी पद्य

ज़िंदगी जी नहीं बर्दाश्त की

ज़िंदगी जी नहीं बर्दाश्त की ऊसर में काश्त की !

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तुमको फ़ुरसत हो मेरी जाँ तो…

तुमको फ़ुरसत हो, मेरी जाँ, तो इधर देख तो लो चार आँखें न करो, एक नज़र देख तो लो तुमको फ़ुरसत हो…

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केरि-बेरि को संग

कहि रहीम कैसे निभै, केरि-बेरि को संग वा डोलत रस आपने, इनके फाटत अंग कवि: अब्दुर्रहीम खान खाना / Abdul Rahim Khan-I-Khana

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नेताओं द्वारा शहीदों का शोषण और शहीद होने की व्यर्थता

कंधे पर लदे बेताल ने विक्रमादित्य से कहा, राजन, मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो अन्यथा तुम्हारा सर धड़ से अलग हो जायेगा, तुम्हारा अस्तित्व हमेशा के लिये खो जायेगा

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आज के इस इंसान को ये क्या हो गया?

आज के इस इंसान को ये क्या हो गया? इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया? कैसी ये मनहूस घड़ी है भाइयों में जंग छिड़ी  है कहीं पे खून, कहीं पर ज्वाला जाने क्या है होने वाला सबका माथा आज … Continue reading

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