फैली हुई हैं सपनों की बाहें…

फैली हुई हैं सपनों की बाहें,
आजा चल दें कहीं दूर
वहीँ मेरी मंज़िल, वहीं तेरी राहें
आजा चल दें कहीं दूर

ऊँची घटा के साये तले छुप जायें
धुँधली फ़िज़ा में कुछ खोयें कुछ पायें
साँसों की लय पर कोई ऐसी धुन गायें
दे दे जो दिल को दिल की पनाहें
आजा चल दें कहीं दूर…

झूला धनक का धीरे-धीरे हम झूलें
अम्बर तो क्या है तारों के भी लब छू लें
मस्ती में झूलें और सभी ग़म भूलें
देखें न पीछे मुड़के निगाहें
आजा चल दें कहीं दूर…

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गीत: साहिर लुधियानवी / Lyric: Sahir Ludhiyanvi
संगीत: सचिन देव बर्मन / Music: S.D. Burman
गायिका: लता मंगेश्कर  / Singer: Lata Mangeshkar
अभिनेता: कल्पना कार्तिक / Actress: Kalpana Kartik
फिल्म: हाउस नं. ४४  (१९५५) / Film: House No. 44 (1955)

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Phaili huyi hain sapnon ki baahen
Aaja chal den kahin door
Wahin meri manzil, wahin teri raahen
Aaja chal den kahin door


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