मेरे साथी ख़ाली जाम…

महफ़िल से उठ जाने वालो, तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम
तुम आबाद घरों के वासी, मैं आवारा और बदनाम
मेरे साथी ख़ाली जाम….

दो दिन तुमने प्यार जताया, दो दिन तुमसे मेल रहा
अच्छा खासा वक़्त कटा, और अच्छा खासा खेल रहा
अब उस खेल का ज़िक्र ही कैसा, वक़्त कटा और खेल तमाम
मेरे साथी ख़ाली जाम….

तुमने ढूँढ़ी सुख की दौलत, मैंने पाला ग़म का रोग
कैसे बनता, कैसे निभता, ये रिश्ता और ये संजोग
मैंने दिल को दिल से तोला, तुमने माँगे प्यार के दाम
मेरे साथी ख़ाली जाम….

तुम दुनिया को बेहतर समझे, मैं पागल था ख़्वार हुआ
तुम को अपनाने निकला था, ख़ुद से भी बेज़ार हुआ
देख लिया घर फूँक तमाशा, जान लिया अपना अंजाम
मेरे साथी ख़ाली जाम….

गीत: साहिर लुधियानवी / Lyrics: Sahir Ludhiyanvi
संगीत: रोशन  / Music: Roshan
गायक: मोहम्मद रफ़ी / Singers: Mohd. Rafi
अभिनेता: भारत भूषण  / Actor: Bharat Bhushan
फिल्म: दूज का चाँद (१९६४) / Fim: Dooj Ka Chand (1964)

See/listen all songs of this movie at:
http://www.hindigeetmala.net/movie/dooj_ka_chand.htm

शब्दार्थ / Urdu Meanings

बेज़ार = त्रस्त, तंग (fed-up, disgusted)
ख़्वार = अपमानित, तिरस्कृत, ज़लील, दुर्दशाग्रस्त, बदहाल

(also see the page with a small collection of Urdu meanings on this site)

Sahir Ludhianvi (Photo: Wikipedia)

Sahir Ludhianvi (Photo: Wikipedia)

Mere saathi khaali jaam
Mahfil se uth jaane waalo, tum logon par kya ilzaam
Tum Aabaad gharon ke waasi, main awara aur badnaam
mere sathi khaali jaam…

do din tum ne pyaar jataya, do din tum se mel raha
achhaa khasaa waqt kataa, aur achhaa khasaa khel raha
ab us khel kaa zikr hi kaisaa, waqt kataa aur khel tamaam
mere sathi khaali jaam…

tum ne dhoondhi sukh ki daulat, maine paala gham kaa rog
kaise bantaa kaise nibhtaa, yeh rishtaa aur yeh sanjog
maine dil ko dil se tola, tum ne maange pyaar ke daam
mere sathi khaali jaam…

tum duniyaa ko behtar samajhe, main paagal tha khwaar hua
tum ko apnaane niklaa tha, khud se bhi bezaar hua
dekh liyaa ghar phoonk tamaasha, jaan liyaa apanaa anjaam
mere sathi khaali jaam…

Wikipedia

Amarita Pritam (Photo: Wikipedia)

Trivia: Sahir wrote this song (nazm) after he met Amrita Pritam and Imroz for the first time together. The encounter left him apparently with some serious emotional turmoil, leading to the creation of this beautiful gem (song). Amrita Pritam recounts in her autobiography Raseedi Ticket (ISBN: 81-7016-066-9, Kitabghar Prakashan, New Delhi, p. 87):

 

 

 

 

 

“साहिर से भी मेरी और इमरोज़ की मुलाक़ात हुई थी। पहली मुलाक़ात में वह उदास था। हम तीनों ने एक ही मेज़ पर जो कुछ पिया, उसके ख़ाली गिलास हमारे आने के बाद भी कुछ देर तक उसकी मेज़ पर पड़े रहे। उस रात को उसने नज़्म लिखी थी – ‘ मेरे साथी ख़ाली जाम, तुम आबाद घरों के वासी, हम हैं आवारा बदनाम ‘… और उसने वह नज़्म मुझे रात के कोई ग्यारह बजे फोन पर सुनाई, और बताया कि वह बारी-बारी से तीनों गिलासों में व्हिस्की डालकर पी रहा है, पर बम्बई में दूसरी मुलाक़ात के समय इमरोज़ को बुख़ार चढ़ा हुआ था, उसने उसी वक़्त अपना डॉक्टर भेज दिया था, उसके इलाज के लिए।”

अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा “रसीदी टिकट” (संस्करण २००५, किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली) से साभार उद्धृत

शब्दों की साधना और इंसानियत के लिये समर्पित…

साहिर के ख़ुद के शब्द बड़े मौज़ूँ महसूस होते हैं : “जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है, जो साज़ पे गुज़री है वो किस दिल को पता है…”

Also see:

  1. The untold love story of Sahir Ludhianvi and Amrita Pritam (Firstpost, July 18, 2014)
  2. अमृता-प्रीतम: कवयित्री-चित्रकार की प्रेम कहानी (Amar Ujala, Oct. 31, 2014)
  3. The painter and the poet (The Hindu, Sept. 9, 2009)
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