एक बार बहुत पहले ये कविता कहीं पढ़ी थी। लिखी तो गयी थी ये संभवतः साठ-सत्तर के दशक के भारत के लिये। पर आज तो लगता है कि जैसे ये अब ग्रीस (यूनान) पर भी चरितार्थ होती है:
आय इकाई, बजट दहाई
प्लान सैकड़ा, खर्च हज़ार
दूर-दूर तक, साख बँधी है
देता है, हर देश उधार
पंद्रह पीढ़ी, गिरवी रख दी
नेता जी ने, जुआ खेल
अब्बर देवी, जब्बर बकरा
तागड़ धिन्ना, नागर बेल