मूल संस्कृत पद्य
स्मितेन भावेन च लज्जया भिया
पराङ्गमुखैरर्धकटाक्षवीक्षणैः ।
वचोभिरीर्ष्याकलहेन लीलया
समस्तभावैः खलु बन्धनं स्त्रियः ।। २ ।।
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हिंदी अर्थ
मुस्कान से
प्रणय-भाव से
लज्जा से, कातरता से
कुछ-कुछ तिरछी चितवन से
मुँह फेरकर निरखने से
मीठे बोलों से
ईर्ष्यावश झगड़ने से
अंगभंगियों से
– इन सभी से
मन को बाँध लेती है रमणियाँ ।
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स्रोत: भर्तृहरि का श्रृंगार-शतक, प्रकाशक: ज्ञान गंगा, दिल्ली (२०११, पृष्ठ: १४)
टिप्पणी: संस्कृत के अद्भुत महाकवियों में से एक भर्तृहरि ने श्रृंगार-शतक की रचना अनुमानासार सातवीं ईस्वी सदी के पूर्वार्ध में की थी। यहाँ प्रस्तुत हिंदी रूपांतर श्री मूलचंद्र पाठक का है।
Source: Bhartrihari Ka Shringar-Shatak by Moolchandra Pathak, Publisher: Gyan Ganga, Delhi (2011, p. 14), ISBN: 81-88139-30-0
Note: Bhartrihari is one of the best known Sanskrit poet, who according to some estimates lived in the first half of the seventh century in North India. The Sanskrit poem above is here from his Shringar-Shatak, the translated Hindi text here is by Moolchandra Pathak published in the source mentioned above.