जीस्त को पुर-बहार क्या करते
दिल ही था सोगवार क्या करते
आपके ग़म की बात है वरना
खुद को हम बेक़रार क्या करते
आपका ऐतबार ही कब था
आपका इंतज़ार क्या करते
थी हमें बहार से क्या उम्मीद
हम उम्मीद-ए-बहार क्या करते
जीस्त पर कब हमें भरोसा था
आप पर ऐतबार क्या करते
थे न जिनको अज़ीज़ खार-ए-चमन
वह भला गुल से प्यार क्या करते
‘शमीय’ जब न शब ही रास आई
सुबह का इंतज़ार क्या करते
——
शब्दार्थ
जीस्त = ज़िन्दगी, जीवन
पुर = भरा हुआ
सोगवार = शोकग्रस्त
शब = रात, रात्रि
——
रचना: अज्ञात
स्रोत: ओशो (पुस्तक “का सोवै दिन रैन”, प्रवचन 4, संस्करण 1978)
ओशो टाइम्स, जनवरी 1996, पृष्ठ 9 से साभार उद्धृत