क़हर हो या बला

क़हर हो या बला हो, जो कुछ हो
काश कि तुम मेरे लिये होते ।

शेर: मिर्ज़ा ग़ालिब

डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 31,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) से साभार उद्धृत

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Qahar ho ya balaa ho, jo kuchh ho
Kaash ki tum mere liye hote

Sher/Couplet: Mirza Ghalib

Gratefully excerpted from “Aaina-e-Ghazal” of Dr. Zarina Sani and Dr. Vinay Waikar, 5th revised edition, 2002, p. 31, Shree Mangesh Prakashan, Nagpur.

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