अपने पति के नाम का रोना रोते हुये
एक महिला ने कहा,
सुनो बहन, इस इंसान के पीछे मैंने
क्या-क्या दुःख नहीं सहा
मैं बीस वर्षों से इसके साथ
जी नहीं सड़ रही हूँ
यही समझो कि धीरे-धीरे मर रही हूँ
बोली पड़ोसन, एक आह भरती हुयी
क्यों जी, रही हो इस तरह
नरक की आग में जलती हुयी
अरी, क्या कहूँ तेरी मति को
पगली, तलाक क्यों नहीं दे देती
अपने दुष्ट पति को
दहाड़ मार कर रोती हुयी महिला चिल्लाई
हे संतोषी माई,
रक्षा करो मेरे जीवन की
मैं सती हूँ, और न सताओ
ये तलाक की बातें, मुझे न बताओ
मैं कसम खाकर कहती हूँ
खुद के तन-मन की
हे संतोषी माई,
रक्षा करो इस भक्तिन की
अभी तो धीरे-धीरे ही मर रही हूँ
किसी तरह ज़िन्दगी गुज़ार रही हूँ
मगर पति को तलाक देकर,
इसे ख़ुशी से फूला देखकर
मैं सदमा सहन न कर पाऊँगी
सच कहती हूँ
एक क्षण में मर जाऊँगी
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रचना: अज्ञात
स्रोत: ओशो रजनीश के एक ऑडियो प्रवचन से साभार उद्धृत