मुहब्बत का अंजाम / Muhabbat Ka Anjaam

ऐ मुहब्बत, तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यों आज, तेरे नाम पे रोना आया

यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का ‘शकील’
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

नज़्म: शकील बदाँयूनी 

नोट: इस नज़्म का पहला शेर डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) में भी उद्धृत  है

शब्दार्थ  / Meanings

गाम = डग, कदम, पग (step)

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Ai muhabbat, tere anjaam pe rona aaya
jaane kyon aaj, tere naam pe rona aaya

Nazm/Poem: Shakeel Badayuni

Note 1: The first couplet of this poem can be also found in “Aaina-e-Ghazal” of Dr. Zarina Sani and Dr. Vinay Waikar, 5th revised edition, 2002, Shree Mangesh Prakashan, Nagpur.

Note 2: “Muhabbat” and “Mohabbat” (मुहब्बत/मोहब्बत) are generally used as synonyms (पर्यायवाची).

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