Tag Archives: Kaka Hathrasi

पुलिस-महिमा (काका हाथरसी)

पड़ा – पड़ा क्या कर रहा , रे मूरख नादान दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले झुक – झुक करें सलाम , खोमचे – ठेले वाले कहँ ‘ काका ‘ कवि … Continue reading

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काका हाथरसी का “सुरा समर्थन”

भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं ‘कायर’ कहँ ‘काका’, कवि बच्चन ने पीकर दो प्याला दो घंटे में लिख डाली पूरी ‘मधुशाला’

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पिल्ला होने का सुख

पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझ भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हाता देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता कहँ ‘काका’ कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्ला पुनर्जन्म में प्रभो! … Continue reading

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जम और जमाई

बड़ा भयंकर जीव है , इस जग में दामाद सास – ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद कर देता बरबाद , आप कुछ पियो न खाओ मेहनत करो , कमाओ , इसको देते जाओ कहॅं ‘ काका ‘ कविराय … Continue reading

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हिंदी की दुर्दशा

(काका हाथरसी के शब्दों में) बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा- बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा कहँ ‘ काका ‘ , जो ऐश … Continue reading

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