चंद्रयात्रा और नेता का धंधा

ठाकुर ठर्रा सिंह से बोले आलमगीर
पहुँच गये वो चाँद पर, मार लिया क्या तीर?
मार लिया क्या तीर, लौट पृथ्वी पर आये
किये करोड़ों ख़र्च, कंकड़ी मिट्टी लाये
‘काका’, इससे लाख गुना अच्छा नेता का धंधा
बिना चाँद पर चढ़े, हजम कर जाता चंदा

वित्तमंत्री से मिले, काका कवि अनजान
प्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं इंसान
रहते हैं इंसान, मारकर एक ठहाका
कहने लगे कि तुम, बिलकुल बुद्धू हो काका
अगर वहाँ मानव रहते, तो क्या हम चुप रह जाते
अब तक सौ, दो-सौ करोड़ कर्जा ले आते

रचना : काका हाथरसी (Kaka Hathrasi)
स्रोत: संक्षिप्त रूप में निम्न स्रोत से उद्धृत:
http://hi.bharatdiscovery.org

Also see: https://www.facebook.com/KakaHathrsi

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