फ़क़ीराना आये सदा कर चले

फ़क़ीराना आये सदा कर चले
मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले

वह क्या चीज़ है आह जिसके लिये
हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले

जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले

बहुत आरज़ू थी गली की तेरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिये यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

जबीं सजदा करते ही करते गई
हक़-ऐ-बंदगी हम अदा कर चले

परस्तिश की याँ तईं कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सबों की ख़ुदा कर चले

गई उम्र दर बंद-ऐ-फ़िक्र-ऐ-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले

कहें क्या जो पूछे कोई हम से ‘मीर’
जहाँ में तुम आये थे, क्या कर चले

ग़ज़ल: मीर तक़ी ‘मीर’ (१७२३-१८१०) /
Ghazal: Meer Taqi ‘Meer’ (1723-1810)

Faqeerana aaye sada kar chale
Miyaan khush raho ham dua kar chale

[…]

Dikhayi diye yoon ki bekhud kiya
Hamen aapse bhi juda kar chale

[…]

शब्दार्थ

सदा = आवाज़ (call)
अहद = प्रतिज्ञा, वचन (अन्य अर्थ: ज़माना, समय)
वफ़ा = प्रतिज्ञा पालन, वचन-पूर्ति (अन्य अर्थ: प्रेम, निष्ठा)
ना-उम्मीदाना = निराश, हताश
याँ = यहाँ
जबीं = माथा, ललाट (forehead)
हक़ = अधिकार
बंदगी = प्रणाम, पूजा, आज्ञापालन
परस्तिश = पूजा, आराधना (worship, prayer)
तईं = ख़ुद, स्वयं, स्वतः
बंद = बंधन, कारावास, फंदा, पाश, गाँठ, खामोश, चुप
फ़िक्र  = चिंता
फ़न = हुनर, कला

स्रोत:  kavitakosh.org, ग़ज़ल का दूसरा शेर: bharatdiscovery.org
नोट: इस ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ ‘बाज़ार’ (१९८२) फ़िल्म के लिये खय्याम के संगीत निर्देशन में लता मंगेश्कर द्वारा गायी गईं थीं और बहुत ही अविस्मरणीय हैं।

Note: A select few stanzas of this ghazal were sung by Lata Mangeshkar for a song in ‘Bazaar‘ (1982) film under Khayyam‘s composition.

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