फिसल गये हैं मोटूमल

फिसल गये हैं मोटूमल
मोटा पेट करे थल-थल
दिन निकले से मुँह चलता है
जैसे चलती चक्की
नहीं पढ़ाई, नहीं लिखाई
ये हैं बक्की-झक्की
चाट, मलाई, कुल्फी देखी
जायें वहीँ मचल

(नोट: ये कविता वर्षों नहीं बल्कि दशकों पहले कभी बच्चों की पत्रिका ‘नंदन’ में पढ़ी थी। अब वह छपती भी है या नहीं, नहीं मालूम। स्मृति के आधार पर उद्धृत।)    

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