बाज़ार का ये हाल है (शैल चतुर्वेदी)

बाज़ार का ये हाल है
कि ग्राहक पीला
और दुकानदार लाल है
दूध वाला कहता है-
“दूध में पानी क्यों है
गाय से पूछो।”

गाय कहेगी-“पानी पी रहीं हूँ
तो पानी ही तो दूंगी
दूध वाला मेरे प्राण ले रहा है
मैं तुम्हारे लूंगी।”

कोयले वाला कहता है-
“कोयले की दलाली में
हाथ काले कर रहे हैं
बर्तन ख़ाली ही सही
हमारी बदौलत चूल्हे तो जल रहें हैं।”

कपड़े वाला कहता है-
“जिस भाव में आया है
उस भाव में कैसे दें
आपको हंड्रेड परसेंट आदमी बनाने का
आपसे फ़िफ्टी परसेंट भी नहीं लें।”

धोबी कहता है-
“राम ने धोबी के कहने से सीता को छोड़ दिया
आप एक कमीज़ नहीं छोड़ सकते
सौ रुपल्ली की कमीज़ भट्टी खा गई
तो आप तिलमिला रहें हैं
इस देश में लोग ईमान को भट्टी में झोंककर
सारे देश को खा रहें हैं।”

मक्खन वाला कहता है-
“बाबूजी ये मक्खन है
खाने के नहीं, लगाने के काम में आता है
जो लगाना जानता है
ऊपर वाला उसी को मानता है।”

डॉक्टर कहता है-
“सोलह रुपये फीस सुनते ही
चेहरा उतर गया
जिस देश में पानी पैसे से मिलता है
वहाँ लोगों को
दवा जैसी चीज़ फोकट में चाहिए
आप जैसों के लिए सरकारी अस्पताल ही बेहतर है
जाइए, वहीं धक्के खाइए।”

अनाज वाला कहता है-
“आप खरीदते हैं, हम बेचते हैं
एक दूसरे को रोज़ देखते हैं
एक और है
बड़े बाप का बेटा
जो देखाई नहीं देता
मगर संसार को तार रहा है
हम तो केवल डंडी मारते हैं
वो डंडा मार रहा है ।”

बुकसेलर  कहता है,
क्या माँगा, प्रेमचंद का गोदान?
यह नाम तो हमने पहली बार सुना है,
आपने भी कौन सा उपन्यास चुना है,
हम तो प्रेमकथायें बेचकर बूढ़ों को जवान कर रहे हैं
मामूली दुकानदार हैं
लेकिन राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर रहे हैं

घी वाला कहता है-
“घी खाने का शौक़ है
तो डालडा ले जाइए
हमारे देश के औद्योगिक विकास का नमूना है
खाएंगे
तो हाथी की तरह फूल जाएंगे
घी तो घी, रोटी खाना भूल जाएंगे।”

कैलेंडर वाला कहता है-
“लोग समाजवाद को सड़कों पर ढूंढ रहें हैं
और समाजवाद हमारी दूकान में बंद है
एक बंडल खोलिए, दर्शन हो जाएँगे
भक्त और भगवान, भिखारी और धनवान
यहाँ तक कि नेता और इंसान
सबको एक ही बंडल में पाएंगे।
हमारे यहाँ का कैलेंडर
योगालय से भोगालय तक में मिल जाएगा
किसी अभिनेत्री का प्राइवेट पोज़ देख लेंगे
तो कलेजा हिल जाएगा।”

बिजली वाला कहता है-
“क्या कहा बिजली गोल है
भाई साहब, हमारे डिपार्ट्मेंट का आधार ही पोल है।”

ट्रक वाला कहता है-
“हमारा भी कोई कैरियर है
हर बीस मील के बाद एक बेरियर है
कार साइड माँगती है, और सरकार..
जाने दो बाबू, अपुन छोटे आदमी हैं
कोई सुन लेगा
तो चालान कर देगा।”

भिखारी कहता है-
“दाता! पाँच पैसे में तो ज़हर भी नहीं आता
जो आपका नाम ले खा लें
और ऐसे समाजवाद से छुट्टी पा लें।”
इस समाजवाद ने पिछले बीस वर्षों में
इतने भिखारी पैदा किये हैं
कि स्वयं सरकार को गिनने में
चालीस वर्ष लग जायेंगे

चोर कहता है-
“मुनाफ़ाख़ोर मुनाफ़ा खा रहें हैं
तो हम भी तिज़ोरियाँ तोड़-तोड़ कर
अधिकार और कर्तव्य को एक साथ निभा रहें हैं
किसी भी तिज़ोरी में झाँक कर देखिए
आत्मा हिल जाएगी
किसी न किसी कोने में पड़ी
लोकतंत्र की लाश मिल जाएगी।
अदालत को हमारा काला चेहरा दिखाई देता है
वकील का काला कोट नहीं दिखता
बाबूजी ये हिन्दुस्तान है, और यहाँ
फैसला गवाह लिखता है, जज नहीं लिखता।”

पाकिटमार कहता है-
“लोग दस-दस साल का इंकमटैक्स मारकर भी वफ़ादार हैं
हमने दस-पाँच रुपए मार दिए
तो पाकिटमार है
उन्हें फ़ौज़ की सलामी
हमें थानेदार का जूता
उनको बंगला, हमको जेल
बाबूजी, इसी को कहते हैं
छछूंदर के सर में चमेली का तेल।”

चश्मेवाला कहता है-
“ये लाल रंग का चश्मा ले जाइए
हिन्दुस्तान भी आपको रूस दिखाई देगा
और ये रहा, सात रंगों वाला चश्मा, मेड-इन अमेरिका है
इमरजैंसी हटने के बाद बुरी तरह बिका है
और ये रही स्पेशल क्वालिटी
लोकतंत्र का अजीब करिश्मा है
काँच का नहीं पत्थर का चश्मा है
एक बाद ख़रीद लो तो पाँच साल तक काम में आता है
हमारे देश का हर नेता इसी को लगाता है।”

विद्यार्थी कहता है-
“आप हमसे छह सवाल
तीन घंटे में करने को कहते हैं
गुरु जी! ये वो देश है
जहाँ एक हस्ताक्षर करने में चौबीस घंटे लगते हैं।”

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रचना: शैल चतुर्वेदी

साभार उद्धृत सौजन्य से:

http://yuganubhav.blogspot.com/2009/07/blog-post_8297.html

(स्वस्मृति से आंशिक रूप से संपादित)

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