यों होता, तो क्या होता?
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता, तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं, तो क्या होता?
हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का,
न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू पर धरा होता |
हुई मुद्दत, कि ग़ालिब मर गया, पर याद आता है,
वो हर बात पर कहना, कि यों होता, तो क्या होता?
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बेहिस = स्तब्ध, ज़ानू = घुटना
(Sher-o-Shayari by Mirza Ghalib; Couplet: “Yon Hota, To Kya Hota”)
Excerpted from: दीवान-ए-ग़ालिब (हिंदी संस्करण, संपादक: क़ज़लबाश सुहरावर्दी, प्रकाशक: डी.पी.एस. बुक्स, नई दिल्ली, पृष्ठ: 47)