ये रात बहुत रंगीन सही
इस रात में ग़म का ज़हर भी है
नग़्मों की खनक में डूबी हुई
फरियाद-ओ-फ़ुग़ाँ की लहर भी है
ये रात बहुत रंगीन सही
तुम रक़्स करो मैं शेर पढ़ूं
मतलब तो है कुछ ख़ैरात मिले
इस कौम के बच्चों की ख़ातिर
कुछ सिक्कों की सौगात मिले
लेकिन इस भीख की दौलत से
कितने बच्चे पढ़ सकते हैं
इल्म और अदब की मंज़िल के
कितने जीने चढ़ सकते हैं
दौलत की कमी ऐसी तो नहीं
फिर भी ग़ुरबत का राज है क्यों
सिक्के तो करोड़ों ढल-ढल कर
टकसाल से बाहर आते हैं
किन वारों में खो जाते हैं
किन पर्दों में छुप जाते हैं
ये ज़ुल्म नहीं तो फिर क्या है
पैसे से तो काले धंधे हों
और मुल्क की वारिस नस्लों की
तालीम की ख़ातिर चंदे हों
अब काम नहीं चल सकने का
रहम और ख़ैरात के नारों से
इस देश के बच्चे अनपढ़ हैं
दौलत के ग़लत बँटवारे से
बदले ये निज़ाम-ए-ज़रदारी
कह दो ये सियासतदानों से
ये मसला हल होने का नहीं
कागज़ पर छपे ऐलानों से
ये रात बहुत रंगीन सही
इस रात में ग़म का ज़हर भी है
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To be completed.
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Yeh Raat Bahut Rangeen Sahi
Is Raat Mein Gham Ka Zahar Bhi Hai
Naghmon Ki Khanak Mein Doobi Huyi
Fariyaad-o-Fugaan Ki Lahar Bhi Hai
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गीत: साहिर लुधियानवी / Lyrics: Sahir Ludhiyanvi
संगीत: खय्याम / Music: Khayyam
गायक: मोहम्मद रफ़ी / Singers: Mohd. Rafi
अभिनेता: कमलजीत, वहीदा रहमान / Actors: Kamaljit, Waheeda Rehman
फिल्म: शगुन (१९६४) / Film: Shagoon (1964)
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http://www.hindigeetmala.net/movie/shagoon.htm
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This song apparently has two versions, one released on audio by Saregama/HMV, and the other one on video as released in the movie. The one in the movie seems to have a stanza, which is only sung half (दौलत की कमी ऐसी तो नहीं, फिर भी ग़ुरबत का राज है क्यों) before the song finishes. It appears as if there must have been something more to it. But so far I haven’t found any additions elsewhere. If someone knows about it then please let me know.