क्या उम्मीद करें हम उनसे…

क्या उम्मीद करें हम उनसे, जिनको वफ़ा मालूम नहीं
ग़म देना मालूम है लेकिन, ग़म की दवा मालूम नहीं

जिनकी गली में उम्र गवाँ दी, जीवन भर हैरान रहे
पास भी आ के पास न आये, जान के भी अनजान रहे
कौन सी आखिर की थी हमने, ऐसी ख़ता मालूम नहीं

ऐ मेरे पागल अरमानो, झूठे बंधन तोड़ भी दो
ऐ मेरी ज़ख़्मी उम्मीदो, दिल का दामन छोड़ भी दो
तुमको अभी इस नगरी में, जीने की सज़ा मालूम नहीं


रचना: ज़फर गोरखपुरी / Poet: Zafar Gorakhpuri

Kya ummeed karen hum unse, jinko wafa maloom nahin
Gham dena maloom hai lekin, gham ki dawa maloom nahin

Source: http://tanmaykm.tripod.com/music/shayaris/shayari5.html, accessed: Feb. 3, 2015

This entry was posted in Hindi | हिन्दी, Literature, Sher-o-Shayari, Urdu (Hindustani) and tagged , , , , , , , . Bookmark the permalink.