मेरे हमनफ़स, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बनके दग़ा न दे
मैं हूँ सोज़-ए-इश्क़ से जाँबलब, मुझे ज़िन्दगी की दुआ न दे
मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी, उसी रौशनी से है ज़िन्दगी
मुझे डर है ऐ मेरे चारागर, ये चराग़ तू ही बुझा न दे
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे
मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराये शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे
वो उठे हैं ले के ख़ुम-ओ-सुबू, अरे ओ ‘शकील’ कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज़्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे
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नज़्म: शकील बदायूँनी / Nazm: Shakeel Badayuni
सौजन्य से: कविताकोष / Source: Kavitakosh.org
नोट: इस ग़ज़ल के कविताकोष में उपलब्ध संस्करण में कुछ त्रुटियाँ हैं जो कि डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित संस्करण 2002, पृष्ठ 72,श्री मंगेश प्रकाशन, नागपुर) में प्रकाशित कुछ अशआर की सहायता से पहचानीं और दूर की जा सकीं।
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शब्दार्थ / Meanings
हमनफ़स = हमनवा = मित्र, सखा (friend)
हमनवा = हमनफ़स = मित्र, सखा (friend)
सोज़ = जलन, तपिश (burning)
जाँबलब = जाँ-ब-लब = मृतप्राय, मरणासन्न (on the verge of death)
चारागर = वैद्य, चिकित्सक, हकीम (healer, doctor)
नवाज़िश = कृपा, दया (kindness, generosity)
मुख़्तसर = संक्षिप्त, छोटी (short, concise)
अज़्म = संकल्प (determination)
आतिश = आग, अग्नि (fire)
गुल = फूल (flower)
ख़ुम =शराब का मटका (pot of wine)
सुबू = मटका (pot, pitcher)
बज़्म = महफिल, सभा (assembly)
अशआर = शेर का बहुवचन (plural for “sher”, i.e. an Urdu couplet)