चंद रोज़ और मेरी जान…

चंद रोज़ और मेरी जान, फकत चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने को, मज़बूर हैं हम
और कुछ देर सितम सह लें, तड़प लें, रो लें
अपने अज्दाद की मीरास हैं, माज़ूर हैं हम

जिस्म पर क़ैद है, जज़्बात पर ज़ंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है, गुफ़्तार पर ताज़ीरें हैं
और अपनी हिम्मत है कि
हम फिर भी जिये जाते हैं
ज़िन्दगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है?
जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं!

लेकिन अब ज़ुल्म की मीयाद के दिन थोड़े हैं
इक ज़रा सब्र, कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं
अरसा-ए-दहर की झुलसी हुई वीरानी में
हम को रहना है, पर यूँ ही तो नहीं रहना है
अजनबी हाथों का बेनाम, गराँबार सितम
आज सहना है, हमेशा तो नहीं सहना है

ये तेरे हुस्न से लिपटी हुई, आलाम की गर्द
अपनी दो-रोज़ा जवानी की, शिकस्तों का शुमार
चाँदनी रातों का, बेकार दहकता हुआ दर्द
दिल की बेसूद तड़प, जिस्म की मायूस पुकार
चंद रोज़ और मेरी जान, फकत चंद ही रोज़ …
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रचना: फैज़ अहमद फैज़ (Faiz Ahmad Faiz)

Chand roz aur meri jaan, fakat chand hi roz…
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शब्दार्थ / Meanings of difficult words

सितम = अत्याचार
अज्दाद = पुरखे, पूर्वज (forefathers)
मीरास = पैतृक संपत्ति (ancestral property)
माज़ूर = विवश, लाचार (helpless)
जज़्बात = भावनायें
महबूस = बंदी (caged)
गुफ़्तार = बातचीत, संभाषण (talk)
ताज़ीर = सज़ा (punishment )
मुफ़लिस = निर्धन, ग़रीब
क़बा = चोला, अंगरखा
मीयाद = समय (period)
अरसा = (1) समय (2 ) मैदान (3 ) अंतर
दहर = (1) युग, समय (2) दुनिया, जग
अरसा-ए-दहर = दुनिया का मैदान
गराँबार = भारी, मँहगा (heavy, costly)
आलाम = क्लेश, दुःख (sorrow)
गर्द = धूल (dust)
शिकस्त = हार, पराजय (defeat)
शुमार = गिनती
बेसूद = निरर्थक, व्यर्थ (futile)

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