व्यंग्यकार (शैल चतुर्वेदी)

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा
और कहा, “एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?”
तो बोला, “पहले खाना खिलाओ।”
खाना खिलाया तो बोला, “पान खिलाओ।”
पान खिलाया तो बोला, “खाना बहुत बढ़िया था
उसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।
अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैं
हमें व्यंग्य मत सुनाओ

—-

रचना: शैल चतुर्वेदी

संक्षिप्त रूप में साभार उद्धृत सौजन्य से:

http://yuganubhav.blogspot.com/2009/07/blog-post_2762.html

This entry was posted in Hindi | हिन्दी, Humor, Literature and tagged , , , , , , , . Bookmark the permalink.