सफल राजनीतिज्ञ वह जो, जन गण में व्याप्त ।
जिस पद को वह पकड़ ले, कभी न होय समाप्त ॥
कभी न होय समाप्त, घुमाए पहिया ऐसा ।
पैसा से पद मिले, मिले फिर पद से पैसा ॥
कँह काका यह क्रम, न कभी जीवन-भर टूटे ।
नेता वही सफल, और सब नेता झूठे ॥
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रचना : काका हाथरसी (Kaka Hathrasi)
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