वतन की राह में, वतन के नौजवाँ शहीद हो
पुकारते हैं ये ज़मीन-ओ-आसमाँ, शहीद हो
वतन की राह में …
शहीद तेरी मौत ही, तेरे वतन की ज़िंदगी
तेरे लहू से जाग उठेगी, इस चमन की ज़िंदगी
खिलेंगे फूल उस जगह पे, तू जहाँ शहीद हो
वतन की राह में …
गुलाम, उठ! वतन के दुश्मनों से इंतक़ाम ले
इन अपने दोनों बाजुओं से, खंजरों का काम ले
चमन के वास्ते, चमन के बाग़बां शहीद हो
वतन की राह में …
पहाड़ तक भी काँपने लगे, तेरे जुनून से!
तू आसमाँ पे इन्क़लाब, लिख दे अपने खून से!
ज़मीं नहीं तेरा वतन, है आसमाँ शहीद हो
वतन की राह में …
वतन की लाज जिसको थी, अज़ीज़ अपनी जान से
वो नौजवान जा रहा है, आज कितनी शान से
इस एक जवाँ की खाक पर, हर इक जवाँ शहीद हो
वतन की राह में …
है कौन खुशनसीब माँ, कि जिसका ये चराग़ है?
वो खुशनसीब है कहाँ, ये जिसके सर का ताज है
अमर वो देश क्यूँ न हो? कि तू जहाँ शहीद हो
वतन की राह में …
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संगीत: ग़ुलाम हैदर
गायक: मोहम्मद रफ़ी, हफीज खान ‘मस्ताना’
चलचित्र: शहीद (१९४८)