Tag Archives: Satire

Parables of Khalil Gibran: The Scarecrow

Once I said to a scarecrow, “You must be tired of standing in this lonely field.” And he said, “The joy of scaring is a deep and lasting one, and I never tire of it.” Said I, after a minute … Continue reading

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तत्कालीन भारत और आधुनिक ग्रीस

एक बार बहुत पहले ये कविता कहीं पढ़ी थी। लिखी तो गयी थी ये संभवतः साठ-सत्तर के दशक के भारत के लिये। पर आज तो लगता है कि जैसे ये अब ग्रीस (यूनान) पर भी चरितार्थ होती है: आय इकाई, … Continue reading

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दहेज की बारात

जा दिन एक बारात को मिल्यौ निमंत्रण-पत्र फूले-फूले हम फिरें, यत्र-तत्र-सर्वत्र यत्र-तत्र-सर्वत्र, फरकती बोटी-बोटी बा दिन अच्छी नाहिं लगी अपने घर रोटी कहँ ‘काका’ कविराय, लार म्हौंड़े सों टपके कर लड़ुअन की याद, जीभ स्याँपन सी लपके

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सफल नेता

सफल राजनीतिज्ञ वह जो, जन गण में व्याप्त । जिस पद को वह पकड़ ले, कभी न होय समाप्त ॥ कभी न होय समाप्त, घुमाए पहिया ऐसा । पैसा से पद मिले, मिले फिर पद से पैसा ॥ कँह काका … Continue reading

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जय बोलो बेईमान की

मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार। झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा ‘सत्य-भगवान’ की, जय बोलो बेईमान की! प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल, टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल। नित्य नई योजना बन … Continue reading

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