Tag Archives: Kaka Hathrasi

बापू के बन्दर आधुनिक युग में (काका हाथरसी)

बन्दर एक बता रहा, रखकर मुँह पर हाथ चुप्पी से बनते चतुर, औंदू-भौंदूनाथ औंदू-भौंदूनाथ, सुनो साहब-सरदारो एक चुप्प से हार जायें, वाचाल हजारों ‘काका’ करो इशारों से, स्मगलिंग का धंधा गूँगा बनकर छूट, तोड़ कानूनी फंदा

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आलसी चेला

मौसम था बरसात का, भादौं आधी रात का आश्रम श्रम से दूर था, सुनो वहाँ की बात सुनो वहाँ की बात, जलेबी दूध पराठे खा पी करके गुरु, ले रहे थे खर्राटे आँख खुली तो, चेले को आवाज़ लगायी क्यों … Continue reading

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शास्त्रीय संगीत (काका हाथरसी)

तम्बूरा ले मंच पर, बैठे प्रेमप्रताप, साज मिले पंद्रह मिनिट, घंटाभर आलाप। घंटाभर आलाप, राग में मारा गोता, धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता। कहें काका, सम्मेलन में सन्नाटा छाया, श्रोताओं में केवल हमको बैठा पाया।

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तेली कौ ब्याह (काका हाथरसी)

भोलू तेली गाँव में, करै तेल की सेल गली-गली फेरी करै, ‘तेल लेऊ जी तेल’ ‘तेल लेऊ जी तेल’, कड़कड़ी ऐसी बोली बिजुरी तड़कै अथवा छूट रही हो गोली कहँ काका कवि कछुक दिना सन्नाटौ छायौ एक साल तक तेली … Continue reading

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दाढ़ी- महिमा (काका हाथरसी)

‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत बिनोवा मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते तो भगवान राम के … Continue reading

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