Tag Archives: हास्य कवितायें

रेल के डिब्बे में रामराज

डिब्बा था रेल का, तूफ़ान मेल का डिब्बे में डाकू थे डाकुओं के हाथों में, बंदूकें-चाकू थे पचहत्तर यात्री थे यात्रियों में एक थे, खद्दर के कपड़ों में दिखते थे नालायक, लेकिन विधायक थे

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फिसल गये हैं मोटूमल

फिसल गये हैं मोटूमल मोटा पेट करे थल-थल दिन निकले से मुँह चलता है जैसे चलती चक्की नहीं पढ़ाई, नहीं लिखाई ये हैं बक्की-झक्की चाट, मलाई, कुल्फी देखी जायें वहीँ मचल (नोट: ये कविता वर्षों नहीं बल्कि दशकों पहले कभी … Continue reading

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नेताओं द्वारा शहीदों का शोषण और शहीद होने की व्यर्थता

कंधे पर लदे बेताल ने विक्रमादित्य से कहा, राजन, मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो अन्यथा तुम्हारा सर धड़ से अलग हो जायेगा, तुम्हारा अस्तित्व हमेशा के लिये खो जायेगा

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तथाकथित सभ्यता / So-called Civilization

हुए इस कदर मुहज़्ज़ब, कभी घर का मुँह न देखा कटी उम्र होटलों में, मरे अस्पताल जाकर —- * शब्दार्थ मुहज़्ज़ब = सभ्य, शिष्ट, civilized —- शेर: अकबर इलाहाबादी डॉ. ज़रीना सानी और डॉ. विनय वाईकर की पुस्तक “आईना-ए-ग़ज़ल” (पाँचवां संशोधित … Continue reading

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मेअराज-ए-सितम

देखना चाहो अगर तुम अपनी मेअराज-ए-सितम मुस्कुरा देना मेरी बरबादी-ए-दिल देखकर

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