Tag Archives: जीवन-सूत्र

पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये….

पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये…. भगवन तेरी सुन्दर रचना कितनी प्यारी है, तेरी महिमा के गुण गाता हर नर-नारी है ख़ामोशी कुछ बोल रही है, भेद अनोखे खोल रही है पंख-पखेरू सोच में … Continue reading

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रात गई फिर दिन आता है…

रात गई फिर दिन आता है इसी तरह आते-जाते ही, ये सारा जीवन जाता है…

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ज़िन्दगी का सफ़र

बिना लिबास के आये थे इस जहाँ में एक कफ़न की ख़ातिर इतना सफ़र करना पड़ा — Bina libaas ke aaye the is jahaan mein Ek kafan ki khaatir, itna safar karna pada — (रचना: अज्ञात / डॉ. राकेश किशोर … Continue reading

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अति का वर्जन

अति गुणी अति निर्गुणी, अति दाता अति सूर इन चारौं से लक्ष्मी, सदा रहत हैं दूर ——– श्रेणी: बुन्देलखंड की लोकोक्तियाँ स्रोत: दोहा ज्ञान अमृत सागर (संग्रहकर्ता: श्री देवीदीन विश्वकर्मा, कीरतपुरा, महोबा, उ.प्र.) मुद्रक: गोपाल ऑफसेट प्रेस (मऊरानीपुर, झाँसी, उ.प्र.) … Continue reading

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कर्महीन

कहा दोष करतार को, कर्म कुटिल गह बाँह कर्महीन किलपत रहै, कल्प वृक्ष की छाँह ——– श्रेणी: बुन्देलखंड की लोकोक्तियाँ स्रोत: दोहा ज्ञान अमृत सागर (संग्रहकर्ता: श्री देवीदीन विश्वकर्मा, कीरतपुरा, महोबा, उ.प्र.) मुद्रक: गोपाल ऑफसेट प्रेस (मऊरानीपुर, झाँसी, उ.प्र.) श्री … Continue reading

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