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आवारा (मजाज़ लखनवी)

शहर की रात और मैं, नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ जगमगाती जागती, सड़कों पे आवारा फिरूँ ग़ैर की बस्ती है, कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

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